लोक गीतों में बेटी-बेटियों की कमी एक महत्वपूर्ण मुद्दा

सिफ्सा का दिल को छू लेने वाला एक लोकविधा मीडिया कैम्पेन

"नारी जो जन्म देती है, नारी जो पालना झुलाती है, नारी जो सभ्यता को रूप देती है, जो प्रकृति का एक सुन्दर उपहार है, उसी नारी के साथ कितनी बड़ी विडम्बना है कि आज की सबसे बड़ी त्रासदी, सबसे गम्भीर समस्या कन्या शिशु जैसी ईश्वर की सुन्दर रचना को लेकर है।".

उपरोक्त कथन आज के समाज का एक दुःखद पहलू है जिसमें कि लड़कों की चाहत के कारण लड़कियों के लिंग अनुपात में भारी गिरावट देखने को मिली है। इसका कारण हमारी सदियों पुरानी भेदभावपूर्ण सामाजिक-संास्कृतिक परम्पराओं एवंम आर्थिक कारणों से उपजी विषम परिस्थितियां हैं, जिसके परिणाम स्वरूप कन्या भ्रूण हत्या हो रही है और महिलाओं के स्वास्थ्य एवं जीवित रहने की सम्भावना पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। भारतवर्ष एवं उत्तर प्रदेश में कम होता लिंग अनुपात एक गम्भीर लिंग संतुलन को समाप्त करने वाला तथ्य है जो सामाजिक ताने-बाने को पूर्णतयः नष्ट कर सकता है। संैम्पल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एस.आर.एस.) 2013 के अनुसार जन्म के समय 1000 लड़कों पर मात्र 878 लड़कियाँ जन्म लेती हैं और यह संख्या 4 वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुचते मात्र 868 रह जाती हैं, जिसका स्पष्ट मतलब है कि या तो वे लिंग चुनाव करते हुए मारी जा रही है अथवा हिंसा और लापरवाही के कारण समय से पहले मर जाती हैं।

कन्या भ्रूण हत्या जैसे घिनौने कृत्य से उत्पन्न लिंग असंतुलन से निबटने के लिए सिफ्सा द्वारा वर्ष 2015-16 में एक लोक मीडिया अभियान, आम जनता के दिल को छू लेने वाला संगीतयुक्त नाटक 'लोक गीतों में बेटी' पूरे प्रदेश में संचालित किया गया। इस अभियान के तहत 20 जनपदों का चयन किया गया जो कि न्यूनतम लिंग अनुपात वाले थे। इन चयनित जनपदों के नाम क्रमशः आगरा, बागपत, बुलन्दशहर, जी0बी0 नगर, गाजियाबाद, मेरठ, मुज़फ्फरनगर, झांसी, हाथरस, हारदोई, बिजनौर, इटावा, कानपुर नगर, श्रावस्ती, मथुरा, वाराणासी, बदाँयू, औरईया, फै़जाबाद और फिरोज़ाबाद थे।

लोकगीत जनसामान्य की अपने ही वातावरण में विभिन्न गतिविधियों के साथ बातचीत, नाच-गाना, पोशाक एवं भाषा शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं। ग्रामीण उत्तर प्रदेश में लोकगीत, लोकनृत्य, नौटंकी, संगीत आदि का अपूर्व खजाना है, जिसे जनता में अति लोकप्रिय एवं स्वीकार्य बनाया जा सकता है। इस अभियान के अन्तर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में लोकप्रिय रसिया, सोहर, नाटक, कव्वाली, नौटंकी, स्वांग एवं रासलीला आदि के द्वारा कार्यक्रम किये गये। लोक विधा संचार द्वारा नवीन विचार, नयी समाजिक व्यवस्था के लिए समायोजन और पारम्परिक व्यापत मान्यताओं को हटाकर एक नयी सोच एवं नया नज़रिया देने में मदद मिली।

इस प्रकार से लोकविधा अभियान के माध्यम से सिफ्सा द्वारा जनसमुदाय को कन्या भ्रूण हत्या एवं उससे सम्बन्धित अन्धविश्वासों एवं व्यवहार के प्रति संवेदनशील किया गया तथा यह प्रयास किया गया कि समाज में कन्या शिशु के महत्व को समझा जाय और लिंग संतुलन की ओर बढ़ने का प्रयास किया जाय।

इस अभियान की रणनीति बहुत ही सूझ-बूझ से बनायी गयी, जिसमें कि लैगिंक असमानता, कन्या भ्रूण हत्या, कम उम्र में शादी, बेमेल विवाह और बेटियों के जन्म पर खुश न होना आदि मुद्दों को ध्यान में रख गया था। समस्त चयनित 20 जनपदों के 1000 से अधिक गांवों में नाटक के रूप में 20 लोक दलों द्वारा समुदाय को प्रेरित करने और बालिका के महत्व पर उन्हें संवेदनशील बनाने के लिए इसे आयोजित किया गया। अभियान की गुणवत्ता के लिए ब्लाक, जनपद, मंडल एवं राज्य स्तरीय, एन0एच0एम0 और सिफ्सा के अधिकारियों द्वारा इसका सघन अनुश्रवण किया गया।

लोक विधा दलों को भारतेन्दु नाट्य अकादमी में एक कुशल संस्था के सहयोग द्वारा प्रशिक्षित किया गया । विभिन्न जिलों में लोक विधा दलों को भेजने के पूर्व इनकी 4 दिनों की पूर्वाभ्यास कार्यशाला की गयी, जिसका उद्घाटन दिनांक 27 अप्रैल, 2015 को भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ में सुश्री सुरभि रंजन, अध्यक्ष आकांक्षा समिति, उ0प्र0 द्वारा किया गया। इस अवसर पर तत्कालीन प्रमुख सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण श्री अरविन्द कुमार तथा कार्यकारी अधिशासी निदेशक श्री अमित कुमार घोष और अपर अधिशासी निदेशक, श्री रिग्ज़ियान सैम्फल तथा सिफ्सा, एन0एच0एम0 के अधिकारीगण और प्रमुख स्वास्थ्य पार्टनर उपस्थित थे।

लोकगीत उ0प्र0 के लोगों के दिलों को गहराई से छूता है और हर अवसर, जैसे शादी, जन्मोत्सव पर गाया जाता है। एक बालक के जन्म के अवसर पर ही उत्सव में हमेशा 'सोहर' गीत गाने की प्रथा प्रचलित है। इस प्रथा को सर्वप्रथम बालिका के जन्म उत्सव हेतु लोक गीत के माध्यम से पेश किया गया। इसके प्रति ग्रामीण समुदाय में सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली और बेटियों के जन्म उत्सव मनाने का माहौल बना।

इस तरह के कार्यक्रम से अभिभूत दर्शकों पर यह प्रभाव हुआ कि वे कार्यक्रम के दौरान बच्ची के जन्म पर 'सोहर' गाने के लिए लोक मंडली को पैसे देने लगे थे।

सोहर

अँगनईया में खेले देखो मेरी बिटिया,जैसे
चंदा से छिटकी हो आज चंदनिया,
सासू रानी उठाय लेओ आपन कनियाँ,
तुम्हें दादी कहेगी मेरी बिटिया अँगनइयाँ ...

जिठनी रानी बिठाय लेओ अपन गोदिया,जीजी रानी बिठाय लेओ अपन गोदिया,
तुम्हें ताई कहेगी मेरी बिटिया।
रोये बिटिया चुपाय लेओ हमार नन्दिया,
छतिया से लगाय चुप होये बिटिया,
तुम्हें बुआ कहेगी हमार बिटिया अँगनइयाँ...

बचपन बीता और बिटिया सयानी
हुयी लागे उसको ये दुनिया बड़ी
ही नयी कुछ करने को ठान रही
मेरी बिटिया जीवन यूँ ही न बीते
सोच रही मेरी बिटिया अँगनइयाँ...

पढ़ लिख कर वो डाॅक्टर इंजीनियर बने
वो तो पी0सी0एस0 आई0ए0एस0 आफिसर
बनें कुल का नाम उजागर करें है बिटिया
नाम जग में ऊँचा करे है बिटिया अँगनइयाँ...

इसके अलावा 'सोहर' के एक गीत ने एक बेमेल शादी के मुद्दे पर प्रकाश डाला, जिसमें एक 60 वर्ष का आदमी अपनी पोती की उम्र की 10 वर्ष की लड़की के साथ बेमेल विवाह करता है। शादी का यह मुद्दा लोगों के दिलों को छू गया।

बेमेल बियाह (अवधी)

घुन सपरी

दस कै कन्या, साठ का दूल्हा, रामा कैसे सपरी।
कच्ची कली फूल मुरझावा रामा कैसे सपरी।
अपनी बिटिया लाडो कै संग नाहिं करो मनमानी,
पहिले खूब पढ़ावा लिखावा, करौ न आनाकानी,
बिन जोड़ी का जोड़ा गाँठयो रामा, कैसे सपरी।।
बिटिया तो अबही घरवा माँ खेलै गुड्डा गुडिया,
दूल्हा का चाही कौनो ब्याह करन कौ बुढ़िया।
तू काहे बौराय गये हौ भइय्या, कैसे सपरी।।

दूल्हा दूल्हन लागैं ऐसन जैसे बाबा पोती,
बिना मेल कै ब्याह रचायौ ममता अँसुवन रोती।
थाम कलेजा देखै लोगवा, रामा कैसे सपरी।।

कन्या कै हाथन माँ देवौ अबही तो फुलझड़ियाँ,
ऐसन ब्याह करावन बालन का लागै हथकड़ियाँ।
अन्यायी कौ दण्ड दिलाये बिना कैसे सपरी।।

लोक विधा अभियान 'लोक गीतों में बेटी' के अन्तर्गत 12 लोकगीतों द्वारा विभिन्न मुद्दों को शामिल किया गया, जैसे लड़के एवं लड़कियों की विवाह की सही आयु, कन्या भ्रूण हत्या, बेमेल शादी, लड़कियों के अधिकार इत्यादि प्रभावशाली संदेशों द्वारा लोगों को संवेदनशील किया गया, जिसकी सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिली, जो कि स्पष्ट रूप से कार्यक्रम की सफलता को सिद्ध करता है।


खरगोश सा नर्म अहसास, होती हैं बेटियां,
संवेदनाओं का इक भंडार, होती है बेटियां,
सेवा-सुश्रुषा भाव से, होती हैं ओत-प्रोत,
कुदरत की अनुपम देन, होती हैं बेटियां।।

बेटियों को प्यार दो, शिक्षित करो, ऊर्जा भरो,
आत्म-निर्भर बन सकें ये, हों सशक्त बेटियां, इनको उड़ान भरने दो, सपने साकार करने दो,
जीवन के हर आयाम में, सफ़लतम हों बेटियां।।

भ्रूण जांच बंद करो, बेटा-बेटी में भेद मत करो,
कोपलों को खिलने दो, कोख में, मारो न बेटियां,
संतुलन मिट जायेगा, सद्व्यवहार सिमट जायेगा,
जब ढूंढोगे चारों ओर, न पाओगे बेटियां।।

डा0 अरूणा नारायण, वरिष्ठ सलाहकार (आर.एम.एन.सी.एच.ए) सिफ्सा

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