उत्तर प्रदेश में परिवार नियोजन सेवाओं की उच्च अपूरित मांग एवं निम्न परिवार नियोजन प्रचलन दर को ध्यान में रखकर, संशोधित जनसंख्या नीति हेतु ठोस आधार हासिल करने के लिए सिफ्सा द्वारा वर्ष 2014-15 में एक शोध अध्ययन किया गया, जिसके तहत उ0प्र0 के ग्रामीण क्षेत्रों में परिवार नियोजन सेवाओं, विशेष रूप से नसबंदी और आई.यू.सी.डी. न अपनाने के कारण ज्ञात किये गये।
उत्तर प्रदेश देश का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है और 3.1 की कुल प्रजनन दर के साथ उच्च प्रजनन दर वाला राज्य भी है। राज्य द्वारा किये गये सभी प्रयासों के बावजूद, कुल 3.39 करोड़ विवाहित लक्ष्य दम्पत्ति के सापेक्ष मात्र 37 प्रतिशत दम्पत्ति ही किसी आधुनिक परिवार नियोजन गर्भनिरोधक साधन का प्रयोग करते हैं। उत्तर प्रदेश मंे लगभग 80 लाख लक्ष्य दम्पत्ति ऐसे हैं, जिनमें परिवार नियोजन हेतु गर्भनिरोधक साधन की माँग अपूरित है। इन में से 38 लाख (48 प्रतिशत) लक्ष्य दम्पत्ति स्थायी परिवार नियोजन विधि अथवा नसबंदी को अपनाना चाहते है, तथा अन्य अस्थायी परिवार नियोजन का साधन अपनाने की इच्छा रखते हैं। उत्तर प्रदेश में गर्भावस्था एवं प्रसव से सम्बन्धित जटिलताओं के कारण एक लाख जीवित जन्मों में मातृ मृत्यु दर 258 है, जिसके लिए गुणवत्तापरक परिवार नियोजन सेवाओं का अभाव एक महत्वपूर्ण कारक है। परिवार नियोजन सेवाओं की जानकारी, सेवाओं की उपलब्धता एवं परिवार नियोजन सामग्री की आपूर्ति से माँ एवं बच्चे के स्वास्थ्य में सीधे सुधार लाया जा सकता है। गर्भ निरोधक साधनों की पहुंच और विकल्पों के इच्छा-अनुरूप प्रयोग की सुविधा, प्रजनन अधिकार के दो प्रमुख आधार है। अपने सभी नागरिको को समुचित, सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण परिवार नियोजन साधन के विकल्प उपलब्ध कराना, राज्य की अत्यन्त महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों मे से एक है। उत्तर प्रदेश में एफ.पी.2020 लक्ष्यों के अन्र्तगत लगभग 12.6 करोड़ नये परिवार नियोजन के उपयोगकत्र्ताओं को बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
इस परिप्रेक्ष्य में मौजूदा जनसंख्या नीति की समीक्षा और इसे संशोधित करने की आवश्यकता महसूस की गयी। इस क्रम में राज्य में उच्च अपूरित मांग तथा परिवार नियोजन साधनों के अल्प प्रयोेग का कारण समझने के लिए सिफ्सा द्वारा एक शोध अध्ययन करवाया गया, विशेष रूप से यह जानने के लिए कि परिवार नियोजन सेवाओं जैसे नसबंदी और आई.यू.सी.डी. को अपनाने में उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में क्या बाधायें हंै। इस अध्ययन का उद्देश्य यह भी जानना था कि इन बाधाओं को दूर करने के क्या अवसर हैं, जिसके लिए राज्य में कार्यरत क्षेत्रीय स्वास्थ्य कर्मियों, कार्यक्रम प्रबन्धकों और नीति निर्माताओं के साथ वार्ता/संवाद का तरीका अपनाया गया।
इस अध्ययन के अन्तर्गत राज्य के 35 जिले, जिनमें कि परिवार नियोजन प्रचलन दर न्यूनतम थी, में से 10 जिले रेन्डमली छांटे गये। ये जिले क्रमशः रामपुर, बहराइच, गोंडा, एटा, मैनपुरी, पीलीभीत, फतेहपुर, बरेली, कानपुर नगर और मऊ थे। इन जिलों के 2400 लक्ष्य दम्पत्ति महिलाओं और 600 सम्बन्धित सासों के एक बड़े समूह के साथ अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में ब्लाक पी.एच.सी. के 20 प्रभारी चिकित्साधिकारी, 100 ए.एन.एम. और 113 आशाओं के साथ भी गहन गुणात्मक एवं गम्भीर साक्षात्कार को शामिल किया गया। राज्य स्तरीय वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, जो कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण कार्यक्रम एवं नीतियों पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं, के साथ भी परिवार नियोजन सेवाओं में वृद्धि, सुधार एवं बाधाओं के निवारण हेतु चर्चा कर, सुझाव प्राप्त कर, इस अध्ययन में शामिल किये गये।
इस अध्ययन ने कई महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर कार्यवाही की आवश्यकता को इंगित किया, जिसमें समाज में व्याप्त परिवार नियोजन से सम्बन्धित कई मिथक एवं भ्रान्तियां, सम्मिलित हैं। परिवार नियोजन साधनों को न अपनाने का मुख्य कारण इसके प्रयोग मे असुविधा, बीमारी/कमजोरी, विधि की विफलता, पहुँच/उपलब्धता न होना, और अधिक बच्चों की चाहत आदि कारण बताया गया। लगभग 31 प्रतिशत लक्ष्य दम्पत्ति, जिन्होंने अपना परिवार पूर्ण कर लिया था, उन्होने स्थायी विधि अपनाने के बारे में नहीं सोचा था और उन्होंने इनके जो कारण बताये, वो थे, नसबंदी से डर, नसबंदी के बाद ताकत में कमी, पति/परिवार के सदस्यों का विरोध, बीमारी/कमजोरी और कुछ मामलों मे धर्म के खिलाफ नसबंदी का होना।
अध्ययन से यह भी पता चला कि महिला नसबंदी की जानकारी समुदाय स्तर पर सभी को थी, जबकि मात्र 68 प्रतिशत लक्ष्य दम्पत्ति ने पुरूष नसबंदी के बारे में सुना था। कुल 14.5 प्रतिशत नसबंदी के लाभार्थियों में से मात्र 0.2 प्रतिशत पुरूष नसबंदी अपनाने वाले लाभार्थी थे। जबकि समस्त आशाओं द्वारा नियमित रूप से विभिन्न अस्थायी विधियों और महिला नसबंदी के लिए क्लाइन्ट/ग्राहकों को प्रेरित किया गया था, मात्र 61 प्रतिशत आशाओं द्वारा क्लाइन्ट को एन.एस.वी. के लिए प्रेरित किया गया था। 38 प्रतिशत आशाओं, जिन्होंने पुरूष नसबंदी के लिए किसी को प्रेरित व संदर्भित किया, में से 26 प्रतिशत ने क्लाइंट को जिला अस्पताल में संदर्भित किया और 12 प्रतिशत आशाओं ने सी.एच.सी /पी.एच.सी. में क्लाइन्ट को संदर्भित किया, कोई भी क्लाइन्ट निजी स्वास्थ्य इकाई के लिए नही भेजा गया।
पुरूष नसबंदी की कम स्वीकार्यता की प्रमुख बाधायें जो देखने को मिलीं, वह हैं - गलत धारणायें, मिथक जैसे नसबंदी के बाद काम करने में कठिनाई, पत्नी द्वारा विरोध, आपरेशन का डर, ज्ञान/जानकारी की कमी, यौन क्रिया में सुखानुभूति की कमी, परिवार द्वारा विरोध, और पुरूष नसबंदी सेवा पहँुच में न होना आदि। यह भी एक यथार्थ सत्य है कि मात्र 17 प्रतिशत पी.एच.सी./सी.एच.सी. में एन.एस.वी. की सेवा प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित डाक्टर उपलब्ध थे, जबकि महिला नसबंदी सेवाओं को उपलब्ध कराने हेतु 91 प्रतिशत इकाईयों पर डाक्टर उपलब्ध थे।
इस अध्ययन से यह भी निकल कर आया कि राज्य में इस क्षेत्र में व्यापक अन्र्तवैयक्तिक संचार एवं प्रचार प्रसार की रणनीति बनायी जानी चाहिए, जो परिवार नियोजन से जुड़ी प्रचलित भ्रन्तियों, मिथक, भय, जो लक्ष्य दम्पत्ति एवं उनके परिवार के सदस्यों में व्याप्त है, पर केन्द्रित हो। आशाओं और अन्य क्षेत्रीय स्वास्थ्य कार्यकत्र्ताओं को प्रसव पूर्व/प्रसव पश्चात देखभाल के साथ परिवार नियोजन परामर्श प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित करने की भी आवश्यकता है। आशा एवं क्षेत्रीय स्वास्थ्य कार्यकत्र्ताओं को व्यवहार परिवर्तन संचार में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। समुदाय में व्याप्त भ्रम एवं गलत अवधारणाओं को मिटाना चाहिए, विशेष कर, स्थायी परिवार नियोजन विधि के सम्बन्ध में।
अध्ययन से यह भी स्पष्ट हुआ कि प्रायः परिवार में, परिवार नियोजन साधन अपनाने के निर्णय लेने में महिला की सास की अहम भूमिका होती है। अध्ययन द्वारा सुझाया गया कि सुनियोजित संचार एवं परामर्श के माध्यम से इस प्रकार के व्यक्तियों को परिवार नियोजन की अगुआई करने वाले प्रमुख प्रभावशाली व्यक्तियों के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।
संस्थागत प्रसव में बढ़ोत्तरी के साथ प्रस्वोत्तर परिवार नियोजन को बढ़ावा देने के लिए महिला दम्पत्ति हेतु पर्याप्त परिवार नियोजन परामर्श की सुविधा उसके अस्पताल में रहने के समय उपलब्ध करायी जानी चाहिए। उसे पी.पी.आई.यू.सी.डी. और प्रस्वोत्तर नसबंदी हेतु प्रेरित करने पर ध्यान केन्द्रित करने की भी आवश्यकता है। अध्ययन से यह भी निकलकर आया कि परिवार नियोजन सेवाओं, विशेषकर आई.यू.सी.डी. और नसबंदी हेतु पहुंच व उपलब्धता बढ़ाने के लिए प्राईवेट/निजी अस्पतालों को जोड़ने की आवश्यकता है। अध्ययन के माध्यम से यह भी सुझाव दिया गया कि कार्यक्रम प्रबंधकों, सर्जनों और क्षेत्रीय कार्यकत्र्ताओं को गर्भ निरोधकों की अद्यतन जानकारी एवं समय समय पर प्रशिक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
परिवार नियोजन के तरीकों के प्रति भ्रान्तियां, आशंका व डर अभी भी समुदाय में हैं, जो कि आधुनिक परिवार नियोजन विधियों के उपयोग को सीमित करता है। स्वास्थ्य कार्याकत्र्ताओं को परिवार नियोजन सम्बन्धी साधनों के उपयोग से होने वाले सहप्रभावों से संबन्धित जानकारी प्रदान करने के लिए भी प्रशिक्षित करना चाहिए। भारत सरकार द्वारा निर्धारित प्रोटोकाल के अनुसार परिवार नियोजन के क्लाइन्टों का फालोअप भी सुनिश्चित करना चाहिए। परिवार नियोजन क्लाइन्ट का फालोअप नही करने पर यदि कोई जटिलता उत्पन्न होती है, तो इसका आसपास के क्षेत्रों में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और अन्य सम्भावित नए क्लाइन्ट नहीं बन पाते हैं। अतः परिवार नियोजन सेवा के पश्चात स्वास्थ्य कार्यकत्र्ता द्वारा निर्धारित मानक के अनुसार क्लाइन्ट का फालोअप अवश्य होना चाहिए। परिवार नियोजन के उपयोग से सम्बन्धित भ्रान्तियों, मिथकों, शंकाओं को समाप्त करने के लिए सामाजिक व्यवहार परिवर्तन संचार अभिनवीकरण रणनीति में लक्ष्य समूह हेतु अभियान, गतिविधियों और सटीक संदेशो को शामिल किया जाना चाहिए। अध्ययन ने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि परिवार नियोजन के लाभ एवं संदेशों को बढ़ावा देने एवं सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं को सम्बोधित करने के लिए विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों को जोड़कर उनके माध्यम से परिवार नियोजन के प्रोत्साहन हेतु गतिविधियां सम्पादित करना चाहिए।
परिवार नियोजन के उपयोग से सम्बन्धित भ्रान्तियों, मिथकों, शंकाओं को समाप्त करने के लिए सामाजिक व्यवहार परिवर्तन संचार अभिनवीकरण रणनीति में लक्ष्य समूह हेतु अभियान, गतिविधियों और सटीक संदेशो को शामिल किया जाना चाहिए। अध्ययन ने इस तथ्य पर भी प्रकाश डाला कि परिवार नियोजन के लाभ एवं संदेशों को बढ़ावा देने एवं सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं को सम्बोधित करने के लिए विभिन्न धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों को जोड़कर उनके माध्यम से परिवार नियोजन के प्रोत्साहन हेतु गतिविधियां सम्पादित करना चाहिए।
विस्तृत अध्ययन रिपोर्ट www.sifpsa.org पर उपलब्ध है।